Because I'm busy!

This something I wrote 6 years back. But never published it. I was checking my old notes, and found this. I thought it’s still true and it will be good idea to share it with you with some updates:
I have time to update my Facebook Status,
But I don’t have time to get updated with my country’s status.
Because I’m busy!
I have time to Google Anything,
But I don’t have time to think, How I spent that evening.
Because I’m busy!
I have time to Tweet,
But I don’t have time to play with a kid, Who is really sweet.
Because I’m busy!
I have time to receive a call and have a long talk,
But I don’t have time to make a call and simply talk.
Because I’m busy!
I have time to chat on WhatsApp for a long,
But I don’t have time to say HI to my Mom.
Because I’m busy!
Are you really busy? Are you still busy?
Good to see:
https://www.youtube.com/watch?feature=player_embedded&v=Z7dLU6fk9QY

हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!

Dedicated to everyone who has seen those 90’s Days:
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!
पूरा दिन हसते खेलते,
ओर एक ही चैनल (दूरदर्शन) से भी खुश रहे लेते,
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!
बडे होते होते रामायण/महाभारत कई बार देख चुके होते,
शायद इसलिए जीवन जीने के हमारे फलसफे क्लियर होते
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!
बन्दे थे हम इतने भोले,
मूर्ति दूध पीती है इस बात बात को भी पचा लेते,
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!
माना हमारे पास मनोरंजन के साधन काम होते,
पर हरेक कार्यक्रम के समय/दिन बिना रिमाइंडर याद रहते,
शायद इसीलिए शाम को हम समय पर घर पर होते,
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!
माना की टीवी मैं चित्र इतने  साफ़ नहीं होते,
पर लोगो के दिल आईने की तरह  साफ़ होते,
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!
घर हमारे छोटे, ओर ना उनमे ऐसी होते,
पर अलग मजा था, जब हम साथ मे छत पर जाकर सोते,
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!
ना मोबाइल, ना वीडियो गेम होते,
पर गलियो मैं बच्चो के खेल (लुप्पा-छुप्पी, कंचे, कबड्डी, इत्यादि) अनोखे होते,
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!
समय बहुत था, पैसे कम थे, पर हमेशा खुश रहते,
पर जनाब अब हाल हैं उलटा, इसिलए उस समय को याद करकर अपना मन बहलाते,
हम नाइनटीस के बन्दे, हम नाइनटीस के बन्दे!

जब से हमने सर ज़ुकाया हैं

The other day someone shared nice image — With the title of “Facebook logo meaning” and somehow it was back of my mind and while observing people for a while I found. How true it is.

And that’s when this poem came to my mind:
जब से हमने सर ज़ुकाया हैं,
हमने कुछ मिसिंग पाया हैं.
जब से हमने सर ज़ुकाया हैं,
समय को पानी की तरह बहाया हैं.
जब से हमने सर ज़ुकाया हैं,
ट्राफिक को बढ़ता पाया हैं.
जब से हमने सर ज़ुकाया हैं,
याद नहीं अपनों से कब बतियाँ हैं
जब से हमने सर ज़ुकाया हैं,
याद नहीं कब भटके हुए मुसाफिर का लुत्फ़ उठाया हैं
जब से हमने सर ज़ुकाया हैं,
ना किसी से टाइम पूछने के बहाने बतियाने का मौका पाया हैं
जब से हमने सर ज़ुकाया हैं,
मैदान को सुना ही पाया हैं
जब से हमने सर ज़ुकाया हैं,
चौबारों पर दादाजी/चाचाजी को ही पाया हैं
इस कविता पढ़ने के लिए भी हमने सर ज़ुकाया हैं,
कोई नहीं, अब तो सर उठाओ और आपके सामने वाले से बतियाओं!
References:

क़ुरबानी

तुमने छोड़ा था घर को इस देश के लिए,
हमने भी छोड़ा घर को पर किसी और देश के लिए.
तुमने खाई थी लाठी बर्फ पर लेट कर,
हमने बनाया जाम वैसी ही बर्फ से.
तुमने फोड़ा था बम अंग्रेजो को जगाने  के लिए,
हमने भी फोड़े बम स्कूलों को  हिलाने के लिए.
तुम्हे लगता था इस देश जैसा और कोई देश नहीं होगा,
हमें लगता हैं इस देश का कुछ नहीं होगा,
हम मैं से कई हैं जो अबभी मानते हैं, इस देश के बिना और देशोंका कुछ नहीं होगा।
तुमने आज़ादी देकर बड़ा उपकार किया हम पर,
हमभी करेंगे कोशिश पूरी ऋण लौटाने का उम्र भर,
हमें नाज़ हैं  भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव और हमारे शहीदों तुम पर!